कहावत है कि “उम्र तो सिर्फ एक अंक है, सच्ची शक्ति सपनों में होती है”। यह कहावत बिहार के सानी कुड़ूवा, जिला सिवान के करन तिवारी पर पूरी तरह से लागू होती है। 22 वर्षीय करन तिवारी, एक युवा लेखक और प्रोफेसर हैं, जिन्होंने अपने बचपन की उम्र में ही अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन कर दिया था। उन्होंने 15 साल की आयु में अपनी पहली किताब लिखी थी। यह एक बहुत ही नायाब उपलब्धि है जो आमतौर पर हर किसी के बस की बात नहीं होती है। अगर आपके सपने बड़े हैं, इरादे मजबूत हैं और मेहनत करने का जुनून है तो आप कम उम्र में ही बड़ी कामयाबी और मुकाम हासिल कर सकते हैं। करन तिवारी इस बात की जीती जागती मिसाल हैं। करन कम उम्र में ही अपने जिले और पूरे देश का नाम रोशन कर रहे हैं।
करन के लिए लिखना केवल एक शौक नहीं बल्कि एक आवश्यकता थी, जो उन्हें अपने जीवन के प्रति और भी सकारात्मक बनाती थी। करन की किताबों में वह विशेष रूप से उन समस्याओं को उठाते हैं, जिन्हें हमारे समाज आमतौर पर अनदेखा कर देता है। इसके साथ ही, उन्होंने 15 साल की उम्र में ही अपना एनजीओ कैट फाउंडेशन खोल दिया था। इस एनजीओ के माध्यम से, वे समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करते हैं।
करन सिर्फ लिखते ही नहीं हैं, बल्कि प्रोफेसर भी हैं। करन युवाओं के लिए पूरे भारत के प्रतिष्ठित इंस्टीट्यूट्स में लगभग 80 से अधिक सेमिनार ले चुके हैं। करन अभी मुंबई में रहते हैं। 22 साल की उम्र में ही वह कई बड़ी उपलब्धियां और अवॉर्ड्स भी अपने नाम कर चुके हैं। टाइम ऑफ इंडिया के द्वारा उन्हें बेस्ट मुंबईकर की लिस्ट में शामिल किया गया था। इसके अलावा उन्हें एमेजॉन ने उन्हें उभरते हुए लेखकों की सूची में भी जगह दी थी। उन्होंने स्मोकिल्स, एंटी रेप कैंपेन और एजुकेशन फॉर ऑल जैसी कई कैंपेन्स में काम किया है।
उनके पढ़ाए हुए कई स्टुडेंट्स आईआईटी, एनडीए और यूपीएससी,सीडीएस में सलेक्ट हो चुके हैं। करन ने सिर्फ सपने देखे ही नहीं, बल्कि उन्हें पूरा करने के लिए जी तोड़ मेहनत भी की और इसलिए आज वह इस मुकाम पर हैं।
करन तिवारी की कहानी हमें यह सिखाती है कि किसी की भी उम्र, पेशा, या सामाजिक स्थिति को देखकर उनकी क्षमता का अनुमान नहीं लगाया जाना चाहिए। अगर काबिलियत हो, सच्ची लगन हो, मन में कुछ कर दिखाने का हौंसला हो तो फिर मुश्किल से मुश्किल ख्वाब भी हकीकत में बदल सकते हैं।